आज ही के दिन हैदराबाद का भारत में विलय कराया गया था । हालांकि हैदराबाद को भारत में शामिल करना इतना आसान नहीं था और काफी चुनोतियों का सामना करना पड़ा।
पटेल को इस बात का अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था. यहां तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फ़िराक़ में था जिसके तहत हैदराबाद गोवा में बंदरगाह बनवाएगा और ज़रूरत पड़ने पर वो उसका इस्तेमाल कर सकेगा.
चित्र लिंक |
आइए जानते हैं हैदराबाद के भारत में विलय की पूरी कहानी
जिस समय ब्रिटिश भारत छोड़ रहे थे, उस समय यहां के 562 में से तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फैसला किया. ये 3 रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद
अंग्रेज़ों के दिनों में भी हैदराबाद की अपनी सेना, रेल सेवा और डाक तार विभाग हुआ करता था. उस समय आबादी और कुल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राजघराना था. उसका क्षेत्रफल 82698 वर्ग मील था जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक था.
हैदराबाद की आबादी का 80% हिंदू लोग थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी हैदराबाद में निजाम और सेना में वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम थे
मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे और निजाम भारत में हैदराबाद का विलय बिल्कुल नहीं कराना चाहते थे।
उसपर कट्टरपंथी क़ासिम राज़वी के नेतृत्व मे रज़ाकार हैदराबाद की आज़ादी के समर्थन में जन सभाएं कर रहे थे और उस इलाक़े से गुज़रने वाली ट्रेनों को रोक कर न सिर्फ़ ग़ैर-मुस्लिम यात्रियों पर हमले कर रहे थे बल्कि हैदराबाद से सटे हुए भारतीय इलाक़ों में रहने वाले लोगों को भी परेशान कर रहे थे
रज़ाकारों की गतिविधियों ने पूरे भारत का जनमत उनके ख़िलाफ़ कर दिया।
जिन्ना से समर्थन की गुहार
निजाम ने मोहम्मद अली जिन्ना से संपर्क कर यह जानने की कोशिश की थी क्या वह भारत के खिलाफ उनके राज्य का समर्थन करेंगे।
दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइंस' में जिन्ना को निजाम के प्रस्ताव के आगे की कहानी लिखी है। नैयर ने अपनी किताब में लिखा है कि जिन्ना ने निजाम कासिम के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह मुट्ठीभर एलीट लोगों के लिए पाकिस्तान के अस्तित्व को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे।
दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइंस' में जिन्ना को निजाम के प्रस्ताव के आगे की कहानी लिखी है। नैयर ने अपनी किताब में लिखा है कि जिन्ना ने निजाम कासिम के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह मुट्ठीभर एलीट लोगों के लिए पाकिस्तान के अस्तित्व को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे।
उस वक्त 20 हजार रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना।
उधर नेहरु माउंटबेटन की उस सलाह को गंभीरता से लेने के पक्ष में थे कि इस पूरे मसले का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए.
सरदार पटेल नेहरू के इस आकलन से सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि उस समय का हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर के समान था,’ जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था.
वीकिपीडिया द्वारा लिया गया चित्र |
इसके बाद हैदराबाद के निजाम हथियार खरीदने और पाकिस्तान के साथ सहयोग करने की कोशिश में लग गए। सरदार पटेल को जैसे ही इसकी भनक लगी तो भारत ने उसपर हमला करने की तैयारी कर ली थी।
ऑपरेशन पोलो
ऑपरेशन पोलो का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे। जब भारत के पास कोई और विकल्प नहीं बचा है तो हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई का फैसला किया गया। 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया।
भारतीय सेना का नेतृत्व मेजर जनरल जेएन चौधरी कर रहे थे। भारतीय सेना को पहले और दूसरे दिन कुछ परेशानी हुई और फिर विरोधी सेना ने हार मान ली। 17 सितम्बर की शाम को हैदराबाद की सेना ने हथियार डाल दिए। पांच दिनों तक चली कार्रवाई में 1373 रजाकार मारे गए थे। हैदराबाद के 807 जवान भी मारे गए। भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए जबकि 97 जवान घायल हुए।
भारतीय सेना की कार्रवाई शुरू होने से दो दिन पहले ही 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया था.
हैदराबाद का भारत में विलय
Reviewed by Rohit
on
September 17, 2018
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